गडचिरोली के संरक्षक मंत्री पद को लेकर महायुति में खींचतान ..!

बल्लारपुर (का.प्र.) : नक्सल प्रभावित और अविकसित जिले के रूप में पहचान रखने वाले गढ़चिरौली जिले में लौह खनिज पर आधारित बड़े-बड़े प्रोजेक्ट शुरू होने से पिछले कुछ वर्षों से बदलाव की बयार बहने लगी है।
इसी कारण बड़े राजनीतिक नेताओं ने गढ़चिरौली पर ध्यान केंद्रित किया है, और विभागों के बंटवारे के बाद अब पालकमंत्री (संरक्षक मंत्री) पद को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। इसके लिए महायुती (सत्तारूढ़ गठबंधन) के तीनों दल सक्रिय हो गए हैं, और स्थानीय नेता दावा कर रहे हैं कि गढ़चिरौली का पालकमंत्री पद हमारे ही दल के पास रहेगा।
एक समय था जब गढ़चिरौली का पालकमंत्री पद कांटों का ताज माना जाता था। आदिवासी बहुल अत्यंत दुर्गम क्षेत्र और उसमें नक्सलवाद की गंभीर समस्या के कारण नेता गढ़चिरौली की जिम्मेदारी लेने से कतराते थे। लेकिन तत्कालीन गृह मंत्री आर. आर. पाटील ने पहल कर गढ़चिरौली की जिम्मेदारी स्वीकार की थी। इसके बाद यहां नक्सलवाद विरोधी कार्रवाइयों और विकास कार्यों को गति मिली। 
आगे चलकर उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस जैसे बड़े नेताओं ने गढ़चिरौली की जिम्मेदारी संभाली। इस दौरान जिले में लौह खनिज उत्खनन और उस पर आधारित प्रोजेक्ट शुरू हुए। नक्सलवाद पर अंकुश लगाने में सफलता मिली। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अपने कई भाषणों में कहा है कि भविष्य में गढ़चिरौली को 'स्टील सिटी' बनाया जाएगा। इसी पृष्ठभूमि में कई कंपनियां गढ़चिरौली में बड़ी निवेश करने के लिए उत्सुक हैं। 
इस कारण गढ़चिरौली के पालकमंत्री पद पर कौन आसीन होगा, इसे लेकर राजनीतिक हलकों में चर्चा तेज है। खास बात यह है कि मंत्रिमंडल में जिले को कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। राजनीतिक सूत्रों के अनुसार, उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे या मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस गढ़चिरौली की जिम्मेदारी ले सकते हैं। राज्य के इतिहास में ऐसा बहुत कम हुआ है जब किसी मुख्यमंत्री ने किसी जिले की पालकमंत्री की जिम्मेदारी ली हो। लेकिन गढ़चिरौली में हो रहे बदलावों को नियंत्रित करने के लिए देवेंद्र फडणवीस पालकमंत्री पद अपने पास रख सकते हैं, ऐसी चर्चा हो रही है।
एकनाथ शिंदे के कार्यकाल के दौरान, जब वे संरक्षक मंत्री थे, कई विकास कार्यों के साथ सूरजागढ़ पहाड़ी पर लौह खनिज उत्खनन शुरू हुआ। कोनसरी में लौह परियोजना का काम भी शुरू हुआ था। लेकिन उनके कार्यकाल के दौरान जिले में बाहरी लोगों का हस्तक्षेप बढ़ने के कारण स्थानीय भाजपा नेता नाराज थे। नागपुर के एक नेता को लेकर प्रशासन में भी काफी नाराजगी थी। इसी कारण, राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इस बार उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को संरक्षक मंत्री पद मिलने की संभावना कम है।

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