सिर्फ अच्छे गुण प्रतिशत से अच्छा शिक्षक बनना मुश्किल - प्रा.राहुल जी.गौर

नागपुर (वि.प्र.) - कहा जाता है गुरु बिना ज्ञान नही परंतु नागपुर के एक महाविद्यालय में एक शिक्षक ने इस कहावत को झुठला दिया है. राष्ट्रसंत तुकडो जी महाराज नागपुर विद्यापीठ में अभी ग्रिष्म कालीन परीक्षा चल रही है. जिसमे बी.ए.संकाय का छटवा सेमिस्टर का अनिवार्य इंग्लिश विषय का पेपर था.कोरोना के चलते नागपुर वि.वि. ने परीक्षा केंद्र होम सेंटर रखा जिसके चलते हर शिक्षक अपने विषय का परीक्षा परिणाम अच्छा लाने के लिए पेपर के प्रश्न उत्तर बताते है.देखा जाए तो यह पूरी तरह से गलत है, फिर भी कॉलेज अपना परीक्षा परिणाम १००% लाने के उद्देश से अपने विद्यार्थियों को खुश करने के लिए व अगले वर्ष के लिए अच्छे अड्मिशन मिले इसे ध्यान मे रख विद्यार्थीयों को पूरा पेपर बता रहे है. जिसके चलते बी.ए.छटवे सेमिस्टर अनिवार्य इंग्लिश विषय के लिए विद्यार्थी बगैर पढाई किए शिक्षक के बदौलत परीक्षा केंद्र पर पेपर देने आ गए. परंतु उन्हे क्या पता था कि, भरोसे की गाय दूध नही देती यह कहावत सच साबित होनेवाली है. विषय शिक्षक ने बच्चों को सभी उत्तर बताये विद्यार्थियों ने खुशी खुशी उत्तर लिख दिए और खुश होकर घर चले गए. घर जाकर होशियार विद्यार्थीयों ने विषय शिक्षक ने बताये उत्तर जाँचे परंतु उन्हे गाइड से ज्यादा शिक्षक पर विश्वास था.जब पेपर की उत्तर पत्रिका कॉलेज पहुची तो सभी विद्यार्थी आश्चर्य चकित हो गए. अपने विषय शिक्षक के बताये सारे उत्तर गलत है और हम सभी इंग्लिश विषय मे फैल हो गए यह देख सभी फेल होने का ठीकरा शिक्षक पर फोड़ने लगे. कंप्लेंट सभी करना चाहते थे, परंतु नागपुर वि.वि. में क्या कंप्लेंट करेंगे की परीक्षा शुरू थी तब हमारे विषय शिक्षक ने जो उत्तर बताये वो सभी गलत निकले.परंतु कोरोना ने सभी विद्यार्थियों की गलती स्वीकार ने की आदत को समाप्त कर दिया और नागपुर वि.वि. कुछ रास्ता निकाल कर हमे आसानी से पास कर दे इस उद्देश से विद्यार्थियों ने बे-धड़क कंप्लेंट कर दी. परंतु इसका फ़ायदा कुछ नही हुआ.सिर्फ कॉलेज की तरफ से शिक्षक पर सवालिया निशान उठाया गया कि, सीनियर कॉलेज मे पढ़ाते हो और अपने ही विषय का ज्ञान नही तो विद्यार्थियों को क्या पढ़ाते हो? वैसे तो जिसे सीनियर कॉलेज मे शिक्षक की नौकरी मिलती है वे बी.एड. और उच्चपदवी मे ५५% गुण प्राप्त करनेवाले शिक्षक होते है.परंतु इस घटना के बाद सवाल यह पैदा होता है कि, उस शिक्षक को विद्यार्थी जीवन मे इतने प्रतिशत मिले कैसे? दूसरा सवाल यह है कि, सिर्फ प्रतिशत देखकर ही शिक्षक की नौकरी देना सही है? तीसरा सवाल यह है कि, कब तक ओल्ड पेपर सेट एवं युटूब के मदत से विद्यार्थि बगैर ज्ञान प्राप्त किए बगैर पूरी किताब पढ़े ८०-८०, ९०-९० प्रतिशत हासिल करेंगे व सिर्फ प्रतिशत के भरोसे शिक्षक बनेंगे.

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