प्रशास्किय भवन की ईमारत नई - काम की रफ्तार पुरानी .!

तहसिल परिसर से राजनतिक दलालों के अच्छे दिन‌ .!

मुल (नासिर खान) : मुल का प्रशास्किय भवन जिस पर करोडो का निधी खर्च किया गया है. बाहर का परिसर पेड पौधों से हरा भरा है. एक बडा सा तिरंगा लहरा रहा है. अन्य प्रशास्किय कार्यलय भी ईस भवन में समाए हुए है. तहसिल के ही नही तो अन्य कार्यालयो से संबधित शहरी तथा ग्रामिणों का मजमा लगा रहता है.ईमारत नयी है काम का ढंग और रफ्तार पुरानी है, हर छोटे बडे काम के लिए लिए दलाली चरम पर है. राजनितिक दलालो के अच्छे दिन की शुरूआत ईसी परिसर से होती है.
अधिकारी, कर्मचारी अपने कार्यालय मे टेबल पर नही है पडोसी टेबल के कर्मचारी से पुछा जाए तो वह बस ईतना कह देगा के पता नही अभी तो यहीं था. ‌भले ही वह आफीस आया ही ना हो . ग्रामिण क्षेत्र से आया आदमी उस टेबल पर जाता‌ है वहां उसे वह कर्मचारी नजर नही आता,बरामदे चमचमाती स्टील की बेंच पर ईंतेजा़र में बैठा रहता है, बिच बिच मे वह तिन चार बार चाय पिने भी चला जाता है ईस बिच वह उस टेबल पर भी चला जाता है और निराश हो कर फिर बेंच पर बैठ जाता है शाम के साढे पांच बज जाते हैं वह फिर एक बार उस टेबल पर जाता हैं, निराश थके कदमों से प्रशास्किय भवन से बाहर चला जाता है. लापता कर्मचारी छुट्टी पर है या अपने निजी काम से गया है या सरकारी काम से गया है वह लौटेगा भी या नही इसकी सटीक जानकारी वहां देने वाला कोई नही है.अनेकों बार देखा जाता है अधिकारी कर्मचारी टेबल पर नही होते और पंखे अपनी रफ्तार से शुरु रहते हैं आखिर बिजली बिल जनता की जेब से निकाल कर ही भरा जाता है, अधिकारी कर्मचारी की जेब‌ से तो बिल भरा नही जाता. यह स्थिती केवल प्रशास्किय भवन की ही नही है अन्य सरकारी कार्यालय भी ईस से अछूत नही है.कर्मचारियों के आने जाने अनुपस्थित रहने पर कोई पाबंदी नही‌ है और ना ही कोई उनसे जवाब तलब करने वाला है.
यह मुल शहर है यहां कोई किसी की शिकायत नही करता भले एक काम के लिए दस दीन चक्कर क्यो ना काटने पडे. कहने का तात्पर्य यही के करोडों की लागत से बडी बडी सरकारी ईमारते तो खडी हो गयी लेकीन काम पुराने ढंग से ही चल रहा है,नयापन कहीं नज़र नही आता. चमचमाती सरकारी इमारतों से चंद चिरपरीचित राजनितिक‌ दलालों के अच्छे दिन अवश्य आ गये हैं इमारत की चमक के हिसाब से हर काम के रेट बढे हुए है कोई भी छोटे से छोटा या बडे से बडा काम हो दलालों के माध्यम से हर‌‌ काम आसान हो जाता है, बडे धन्ना सेठों के काम तो घर बैठे हो जाते है क्यों‌ के फ़ोन लगा कर आदेश कराने वाले नेता उनके पास होते है. कहा यह भी जाता है के दिल्ली, मुंबई के काम हो तो हवा मे जाते है हवा में आते है ,ऐसे कामों के रेट भी तो कुछ कम नही होंगे. ऐसे दलाल स्वार्थी नेताओं के कारण ही पार्टी की छबी धुमिल सी होती जा रही है.
कर्मचारीयों का टेबल पर ना होना ईस पर उच्च अधिकारीयों द्वारा कोई एक्शन ना लेना जनता के हित में नही है, भारी भरकम स्टाइलिस्ट सरकारी ईमारत भी आज जनहीत मे नही जब तक जनता के काम आसानी से बिना दलालों के नही होते. यह प्रशास्किय भवन और‌ ईमारत किसी काम‌ की नही ऐसा जानकारों तथाअनुभवियों का मानना है.

महा शिवरात्री पर बस स्थानक परिसर मे महाप्रसाद का वितरण.!

मुल : महाशिवरात्री के अवसर पर प्रती वर्षानुसार ईस वर्ष भी मुल बस स्थानक परिसर में राकेश रत्नावार की ओर से महाप्रसाद का आयोजन किया गया था. इस महा प्रसाद का लाभ हजारो यात्रीयों एस टी चालक वाहको तथा मार्कंडादेव यात्रा मे शिव दर्शन को जाने वाले तथा दर्शन कर लौट रहे शिव भक्तों ने उत्साह के के साथ उठाया. महाप्रसाद का वितरण जिला मध्यवर्ती बैंक के अध्यक्ष‌ संतोष सिंह रावत के हाथों किया गया.इस महाप्रसाद कार्यक्रम को सफल बनाने हेतु कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने तथा बस स्थानक परिसर मे हनुमान मंदीर पुजारी तथा एसटी कर्मचारीयों अथक परिश्रम किया. महा प्रसाद कार्यक्रम सुबह से शाम तक चलता रहा.

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