बल्लारपुर की राजनीति में मचा घमासान .!ओबीसी महिला नगराध्यक्ष पद को लेकर भाजपा, कांग्रेस और अन्य दलों में रस्साकशी तेज .!
बल्लारपुर : आगामी नगर परिषद चुनाव को लेकर बल्लारपुर की राजनीति इन दिनों बेहद गरमाई हुई है। इस बार नगराध्यक्ष पद ओबीसी (महिला) वर्ग के लिए आरक्षित होने के कारण सभी प्रमुख राजनीतिक दलों — भाजपा, कांग्रेस तथा अन्य प्रादेशिक दलों में जोरदार रस्सा-खींच का माहौल बन गया है।
जहाँ एक ओर भाजपा में स्थानीय स्तर पर गुटबाजी खुलकर सामने आ रही है, वहीं कांग्रेस भी अंदरूनी खींचतान से जूझती नज़र आ रही है। दोनों ही दलों में “कौन बनेगा चेहरा” को लेकर बैठकें, लॉबिंग और शक्ति प्रदर्शन का दौर जारी है।
ओबीसी महिला आरक्षण बना चर्चा का केंद्र :
नगराध्यक्ष पद के आरक्षण की घोषणा के बाद से ही बल्लारपुर में कई नए चेहरे सक्रिय हो गए हैं। खास बात यह है कि कई ऐसे नाम भी चुनावी दौड़ में शामिल हो चुके हैं, जिन्होंने अब तक समाजसेवा या स्थानीय जनसंपर्क से कोई खास नाता नहीं रखा था।
इन आरक्षित किरदारों (उम्मीदवारों) के मैदान में उतरने से जनता के बीच सवाल उठने लगे हैं —
“क्या सिर्फ आरक्षण का लाभ उठाकर नेतृत्व संभव है?”“क्या जनहित की समझ और अनुभव को अब नज़रअंदाज़ किया जाएगा?”
भाजपा में शक्ति प्रदर्शन का दौर :
भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ता और वरिष्ठ नेता अपने-अपने समर्थित उम्मीदवार को आगे बढ़ाने में जुटे हुए हैं। पार्टी में गुटबाजी खुलकर सामने आ चुकी है। कई पूर्व नगरसेवक और पदाधिकारी अपने-अपने गुट की बैठकों में भीड़ दिखाकर अपनी ताकत का प्रदर्शन कर रहे हैं।
सूत्रों के अनुसार, संगठन स्तर पर “एकता बनाए रखने” की कोशिशें की जा रही हैं, परंतु अंदरूनी मतभेद लगातार गहराते जा रहे हैं।
कांग्रेस भी पीछे नहीं :
कांग्रेस खेमे में भी टिकट वितरण को लेकर माथापच्ची जारी है। कुछ स्थानीय नेता युवा चेहरा आगे लाने की वकालत कर रहे हैं, तो कुछ पुराने कार्यकर्ता “अनुभवी उम्मीदवार” पर भरोसा जताने की बात कह रहे हैं। पार्टी में टिकट को लेकर मौन असंतोष देखा जा रहा है।
जनता के बीच बढ़ी उलझन :
बल्लारपुर की जनता इस राजनीतिक खींचतान के बीच उलझी नज़र आ रही है। शहर की प्रमुख समस्याएँ — जैसे कि सफाई व्यवस्था, पानी की समस्या, सड़कें, और बेरोज़गारी — अब भी जस की तस हैं।
जनता के मन में सवाल गूंज रहा है —“नेता बदलेंगे, पर क्या शहर बदलेगा?”क्या होगा जनता का फैसला? :आगामी चुनाव में बल्लारपुर की जनता के सामने कई विकल्प होंगे — अनुभवी बनाम नए चेहरे, सेवा बनाम दिखावा, और संगठन बनाम गुट।
अब देखना यह है कि जनता किसे अपना जनप्रतिनिधि चुनती है — वह जो जनता के बीच रहा है, या वह जो अब चुनावी मौसम में दिखने लगा है।
बल्लारपुर की राजनीति इस समय एक चौराहे पर खड़ी है। जहाँ एक ओर महिला सशक्तिकरण और आरक्षण का संदेश है, वहीं दूसरी ओर राजनीतिक महत्वाकांक्षा और गुटबाजी की गरमाहट भी महसूस की जा सकती है। आने वाले कुछ हफ्ते निश्चित ही बल्लारपुर के राजनीतिक इतिहास के लिए निर्णायक साबित होंगे।