जीवन की चंद ज़रूरतें,
फिर क्यों दिखावे में जीता इंसान.....
धन ,रुपया ,पद ,प्रतिष्ठा ,रूप और रंग
किसका रुका आज तक बोलो ,
रिश्तो से ज्यादा लगाव नहीं
जिन पास पैसा , नतमस्तक है तिन इंसान....
जानता सब कुछ है फिर भी मौन क्यों है इंसान.....
जंगल काटे, नदिया मोडी ,रुका के पानी बांधा बांध,
हवा, पानी, सौर,आणविक ऊर्जा भी कम पड़ी,
फिर भी कहां रुका इंसान
हवा पानी दूषित कर,
कारखानों का भरमार ,
अब दिखाते सीमेंट के जंगल का अंबार,
फिर नैसर्गिक सुंदरता ढूंढने कहां कहां जाए इंसान
जानता सब कुछ है फिर भी मौन क्यों है इंसान
हिम पिघला ,नदिया सिकुड़ी ,जंगल कटे ,बने खेत और खलिहान ,
खोदा पर्वत ,ढोया खनिज तेल रेत सब तस्कर बन, ले लिया प्रकृति का बलिदान,
समुद्र बढा और तट को छोड़ा, शहर डूबने के कगार ,
पैसों के भाषा के आगे, बिका हुआ है सब संसार ,
मुंह खोले कोई तो सच बोले ,
लगता है सबको, सब कुछ बेकार,
जानता सब कुछ है फिर भी मौन क्यों है इंसान...
धन ,रुपया ,पद ,प्रतिष्ठा ,रूप और रंग
किसका रुका आज तक बोलो ,
रिश्तो से ज्यादा लगाव नहीं
जिन पास पैसा , नतमस्तक है तिन इंसान....
जानता सब कुछ है फिर भी मौन क्यों है इंसान.....
जंगल काटे, नदिया मोडी ,रुका के पानी बांधा बांध,
हवा, पानी, सौर,आणविक ऊर्जा भी कम पड़ी,
फिर भी कहां रुका इंसान
हवा पानी दूषित कर,
कारखानों का भरमार ,
अब दिखाते सीमेंट के जंगल का अंबार,
फिर नैसर्गिक सुंदरता ढूंढने कहां कहां जाए इंसान
जानता सब कुछ है फिर भी मौन क्यों है इंसान
हिम पिघला ,नदिया सिकुड़ी ,जंगल कटे ,बने खेत और खलिहान ,
खोदा पर्वत ,ढोया खनिज तेल रेत सब तस्कर बन, ले लिया प्रकृति का बलिदान,
समुद्र बढा और तट को छोड़ा, शहर डूबने के कगार ,
पैसों के भाषा के आगे, बिका हुआ है सब संसार ,
मुंह खोले कोई तो सच बोले ,
लगता है सबको, सब कुछ बेकार,
जानता सब कुछ है फिर भी मौन क्यों है इंसान...
