राजनीति में घमंड नहीं करना चाहिए .!

चंद्रपुर (वि.प्र.) : जिले में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के भीतर बढ़ता आंतरिक कलह और विधायक व पदाधिकारियों के बीच बढ़ती श्रेय लेने की होड़ के चलते यह सवाल खड़ा हो गया है कि पार्टी में "असली बाप" कौन है? यह वर्चस्व की लड़ाई अब सड़कों पर दिखने लगी है। चंद्रपुर शहर में गणेश विसर्जन की शोभायात्रा के दौरान यह संघर्ष आम जनता ने अपनी आँखों से देखा। स्थिति इतनी गंभीर थी कि किसी तरह की मारपीट न हो, इसलिए IPS और PSI स्तर के कई पुलिस अधिकारी पूरे दल-बल के साथ भाजपा के विधायक सुधीर मुनगंटीवार और विधायक किशोर जोरगेवार के स्वागत मंडपों के पास तैनात किए गए थे।
इसी बीच, 2022 में हरियाणवी भाषा में आया और नरेंद्र बंगा द्वारा गाया गया प्रसिद्ध गीत "बाप तो बाप रहेगा" बजाया गया। यह गाना दोनों मंडपों के पास बजाया गया, और दोनों ही विधायक इस पर नाचते भी दिखे। लेकिन जब जोरगेवार समर्थक यह गाना बजाकर यह जताने की कोशिश करने लगे कि "हम ही असली बाप हैं," तो सवाल उठता है कि क्या हँसना चाहिए या रोना?
जिन लोगों की छत्रछाया में आप विधायक बने, उन्हीं को सार्वजनिक रूप से चुनौती देना और खुद को "बाप" बताना यह दर्शाता है कि किशोर जोरगेवार की सोच बचकानी है। सुधीर मुनगंटीवार जैसे नेता, जिनका राज्य की राजनीति में दबदबा रहा है, जिन्हें विपक्षी दलों के नेता भी सलामी देते हैं – उनके सामने खुद को बड़ा दिखाना क्या वाजिब है?
भाजपा कार्यकर्ताओं को इस पर गंभीर चिंतन करना चाहिए, क्योंकि यह अंदरूनी संघर्ष अब जनता के लिए एक तमाशा बन गया है, और इस तमाशे की परिणति किसी की जान तक ले सकती है – ऐसी चिंता अब पार्टी के कई वरिष्ठ और विवेकशील कार्यकर्ता व्यक्त कर रहे हैं।
भाजपा के वरिष्ठ नेता और वर्तमान में बल्लारपुर से विधायक सुधीर मुनगंटीवार का जिले की राजनीति में हमेशा दबदबा रहा है। संगठनात्मक काम हो या पार्टी के सामाजिक-राजनीतिक कार्यक्रम, मुनगंटीवार हमेशा सबसे आगे रहे हैं। मुनगंटीवार का जितना प्रचार-प्रसार और जनसंपर्क रहा है, उतना शायद पूर्व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर का भी नहीं रहा।
लेकिन 2024 के विधानसभा चुनावों के बाद, जब भाजपा महायुति को बड़ी जीत मिली, तब मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस द्वारा राजनीतिक रणनीति के तहत मुनगंटीवार को मंत्री पद से बाहर किया गया। इसके चलते उनके विरोधी एकजुट हो गए और उन्हीं के बनाए कार्यकर्ता अब उन्हें चुनौती देने लगे।
मुख्यमंत्री फडणवीस का नाम लेकर खुद को ऊँचा दिखाने की कोशिश करने वाले ये नेता भूल जाते हैं कि जब राजनीति में वक्त बदलता है, तो वही लोग जो आज शेर बन रहे हैं, कल मुनगंटीवार के सामने मेमने बनकर खड़े होंगे।
राजनीति में घमंड नहीं करना चाहिए। जैसे समुद्र में ज्वार-भाटा आता है, वैसे ही राजनीति में भी सत्ता आती-जाती रहती है। आज जो सत्ता में है, कल उसे कोई पूछेगा भी नहीं – यह सच्चाई मुनगंटीवार विरोधियों को समझनी चाहिए। क्योंकि सुधीर मुनगंटीवार एक अनुभवी, आक्रमक और राज्य के राजनीतिक पटल पर मजबूत नेता हैं, और उन्हें हराना इतना आसान नहीं है।
चंद्रपुर शहर भाजपा के अध्यक्ष सुभाष कासनगोट्टूवार इन दिनों चर्चा में हैं। पहले वे मुनगंटीवार के भरोसेमंद माने जाते थे। लेकिन बाद में उनका एक रहस्य उजागर हुआ और वे तत्कालीन विधायक नाना शामकुले के खेमे में चले गए। अब ऐसा लग रहा है जैसे उन पर जोरगेवार का असर हो गया है।
कासनगोट्टूवार ने मुनगंटीवार के कट्टर समर्थकों को शहर के संगठनात्मक पदों से दूर करने का प्रयास किया, और जिन्हें पद दिए गए, उनमें से कई ने इस्तीफा दे दिया। अब वे विधायक किशोर जोरगेवार के "संरक्षक" के रूप में दिख रहे हैं।
"अम्मा" के स्मारक निर्माण के मुद्दे में उन्होंने दखल दी, लेकिन वे खुद उस मुद्दे में फंस गए और विफल हो गए। अब गणेश विसर्जन की शोभायात्रा के स्वागत मंडप के विवाद में कूदकर उन्होंने एक तरह से "नारद" की भूमिका निभाई।
छत्रपति शिवाजी महाराज का एकवचन में उल्लेख करके उन्होंने जनभावनाओं को ठेस पहुँचाई और जनता में नाराज़गी पैदा की, जिससे वे विरोधियों के रडार पर भी आ गए हैं। लेकिन जोरगेवार का उन्हें समर्थन प्राप्त है, जिससे यह लग रहा है कि अब वे पूरी तरह से जोरगेवार के प्रभाव में है।
चंद्रपुर की भाजपा में यह शक्ति संघर्ष अब केवल पार्टी तक सीमित नहीं रहा, यह जनता के सामने एक तमाशा बनता जा रहा है। जहाँ एक ओर एक वरिष्ठ, अनुभवी नेता सुधीर मुनगंटीवार हैं, वहीं दूसरी ओर खुद को साबित करने की होड़ में लगे विधायक जोरगेवार हैं। ऐसे में पार्टी कार्यकर्ताओं और नेतृत्व को यह तय करना होगा कि "बाप" कौन है, और बेटा कब मर्यादा लांघ रहा है।

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