ऐ ईमान वालों ऐ बेईमानो लुट लो जितना लूटना है ..
मुल (नासिर खान) : इस्लाम मे माहे रमजा़न यही एक महीना ऐसा है जिसमे अल्लाह अपने बंदो को आज़माता है, और अपनी रहमतों, बरकतो से नवाज़ता भी है. हर मुसलमान चाहे वह पढा लिखा हों अनपढ हो, जाहील हो आलीम हों रियाकार हो बदकार हों, फ़रमा बरदार हो ना फ़रमान हो, हलाल हराम कमाने खाने वाला हो रमजा़न के महीने का एहतेराम करता दिखाई देता है. अगर वह किसी कारण रोजा़ ना भी रखता हो़ तो वह बाहर कहीं खाता पिता नज़र नही आता, झुठ बोलने से परहेज़ करता है, ग़लत नज़र से किसी महीला को देखने, किसी को भला बुरा बोलने, किसी का दिल दुखाने से बचता है. रमजान का अदब करना भी अपने आप में एक ईबादत है.
ईसी रमजा़न के महीने में कुछ लोग ऐसे भी नज़र आते है जिन्होने माहे रमजान को अपना बिजनेस बना रख्खा है. एक तरह से इन्हे कौम को लुटने वाले लुटेरे भी कहा जाए तो कहीं गलत नही होगा. सर पर टोपी, चेहरे पर कालीक पुती तो कहीं लाल रंगीन दाढी, माथे पर नमाजी़ होने का ठप्पा,हाथ मे बैग लिए घुमते नज़र आते है. जिनकी जुबान और बात चित का अंदाज साफ साफ बताता है के यह कौम को लुटने वाली टीम यु.पी. बिहार की है. ईसमे अनेको उलेमा मौलवी भी होते है जो सफी़र बन कर पुरे मुल्क मे कश्मीर से कन्याकुमारी तक पुरा रमजा़न भर कुछ लोग बिना रोजा़ रखे घुम घुम कर ज़कात वसुलते रहते है और हकदारों का हक मारते रहते हैं.आज देश में लगभग 20 करोड से ज्यादा की आबादी मुसलमानों की है.
ईस दौर मे 60 से 70 % प्रतीशत मुसलमानों की ओर से माहे रमजान में ज़कात खैरात सदका निकाला जाता है जिस पर केवल और केवल यतीमों बेवाओं गरीब पशमांदा लोगों का हक होता है जिसे यह लुटेरे मदरसों के मस्जिदों के नाम पर अपनी झोली मे डाल लेते है और कौम के लोग भी ऐसे लुटेरों को ज़कात खैरात सदका दे कर यह समझ लेते हैं की अब तो वे जन्नत के हकदार हो गये. ईधर उसका सगा भाई बिमार है लाचार है मोहताज है गरीबी में दिन गुजार रहा है, बहन है बेवा है वह दुसरों के यहां पोछा बरतन कपडे धोकर अपने बेटा बेटी को रूखी सुखी खिलाकर पढा़ रही है, बेटी के शादी के लिए गैरों के दर पर हाथ फैला रही है,मां बाप एक तरफ अलग थलग पडे हैं अपनी जरूरतों के लिए दुसरों की तरफ देख रहे है, असल में ज़कात खै़रात सद्का के हकदार तो यह अपने करीबी लोग है जो जरूरत मंद है और जकात खैरात उन लुटेरों को दी जारही है जिन्हे वो जानते ही नही,जिनके पास रसीद बुक है मदरसे का रजिस्ट्रेशन नंबर भी लिखा होता है लेकीन वह असली है या नकली,मदरसा है भी या नही फिर भी जकात खै़रात का दिखावा करने वाले आवाज़ लगाकर " मौलाना साहब मेरे तरफ से एक हजा़र दुसरी तरफ से आवाज़ आती है मौलाना साहब मेरी तरफ दो हजा़र की रसिद बनाना " ऐसे अनेको है जो यह भी नही जानते जिसे हम ज़कात देकर रसिद ले रहे है वह असली है भी या नही, दी गयी रकम सही जगह जा भी रही है या नही.
सही मानो मे हमारे मुल्क में मदरसों को एक बडे बिजनेस के रूप मे अपनाया जाने लगा है जिसके चलते मदरसों की तादाद दिन ब दिन बढती जा रही है. पिछले जिले के एक लडकियों के मदरसे मे बहोत कुछ गलत हुवा जिसकी रिपोर्ट भी हुई थी उस प्रकरण को चंद मुल्लाओं ने रफा दफा करवा दिया. कौम के लोगों को यह समझा दिया गया के ईसमे मदरसे की बदनामी होगी,इस्लाम बदनाम होगा.
चंदा ज़कात देना ही तो अपने जिले में अपने ईलाके मे भी मदरसें हैं अपनी आंखों के सामने है उसमे 100 में से 95 पर यु पी बिहारी मुल्ला मौलवी का वर्चस्व है जिसमे चंद मदरसों के मुल्ला मौलवी ईमानदारी से सिर्फ और सिर्फ दीन की खिदमत को अंजाम दे रहे है यह भी एक सच है. जिन्होने मदरसों को बिजनेस बना लिया ऐसे अधिकांश मुल्ला मौलवी तो आज करोडो में खेल रहै जो कभी केवल 3000/-रू.मे ईमामत करते थे. जरुरत पडने पर उन मदर्सों और उनके चलाने वाले मुल्लाओं मौलवियों जो खुद बिर्यानी पर हाथ साफ करते है और मदरसे के बच्चों को दाल चावल पर सुलाते हैं . ऐसे मदरसों और उसके चलाने वाले मुल्लाओं का कच्चा चिठ्ठा और काले कारनामें समय आने पर मंजरे आम पर सामने लाए जा सकते हैं क्योके इस्लाम और दीनी तालीम, जन्नत दोज़ख को जहन मे ठुस ठुस कर मदरसों की आड में बहोत कुछ चल रहा है. ईस्लाम ऐसे मदरसों मुल्ला मौलवियों के खिलाफ जे़हाद की ईजा़ज़त देता है.
कौम के लोग बाहरी मदरसों को ज़कात चंदा देने के बजाय स्थानिय या अपने जिले के मदर्सो को ज़कात खैरात चंदा दे सकते है वहां पर भी यतीम ग़रीब और तलबा पढाए जा रहे हैं अगर अपने ईलाके का पैसा ईलाके के मदरसों को दिया जाए तो स्थानिय मदरसों के हालात मे सुधार आ सकता है बच्चों की कुरआनी तआलीम और दीनी तालीम के अलावा अन्य शिक्षाएं प्रशिक्षण और सुविधांए उपल्ब्ध हो सकती है और मदरसों का हिसाब किताब पर भी नज़र रखी जा सकती है. कौम ने आज तक देने का ही काम किया हैं कभी हिसाब किताब कौम को बताया नही गया है. हर चंदा जकात देने वाले को हिसाब किताब पुछने का कानुनी अधिकार प्राप्त है.
बिहार यु. पी. से आने और कौम से मदरसों के नाम पर लुट कर ले जाने वालों की हकीकत तो यह हैं के ईनमे अनेको मुल्ला मौलवी सफि़र होते है, सफि़र मदरसों के मस्जिदों के नाम पर पुरे देश मे बिना रोजा़ रखे घुम घुम कर कमिशन पर चंदा जमा करने वाले को कहा जाता हैं अगर किसीने 1000/- रू. दिए तो 600/ रू. सफी़र के होते हैं और 400/- रू मदरसे को जाते है, अगर उसके पास नकली मदरसा,नकली र.न. नकली रसिद बुक होगी तो पुरे हजा़र रु. उसके अपने हुए. कहा यह भी जाता है की शहर के जिस ईलाके मे जो भी सफी़र ज़कात खैरात वसुल करता है उस ईलाके के मस्जि़द के मुल्ला जो यु पी बिहार का हो तो उसे 10% कमिशन ईमानदारी से देकर जाता है.अब आप अपने आप से सवाल करें की कुरान हदीस सुनाकर ज़कात चंदा वसुलने वाला वह बेरोज़दार खुद और जकात देने वाला जन्नत का हक़दार हो सकता है शायद जवाब नही में ही आयेगा. मदरसों का बिजनेस और मदरसों के नाम पर जारी लुट का बहोत बडा जखी़रा हमारे पास है. यहां बस ईतना ही कहना चाहते है की असल हक़दारों को उनका हक मिले,ज़रूरत मंदों की ज़रूरत पुरी हो. ऐ ईमान वालों ऐ बेईमानों लूट लो जितना लुटना है यह रहमतों बरकतों वाला माहे रमजा़न है.