विद्यार्थी मित्रों आज स्पर्धा सिर्फ दिमाग में हैं,.. वास्तविक्ता में नही..!

प्रिय विद्यार्थी मित्रों हम बचपन से सुनते आ रहे है स्पर्धा का युग है सफल होना है तो महेनत करों परंतु महेनत से सफल होते है यहाँ तक ठीक है। क्योंकि इस दुनिया मे बगैर महेनत के कुछ नही मिलता परंतु आज स्पर्धा सिर्फ दिमाग मे है वास्तविक्ता में नही क्योंकि आज सारी दुनिया मोबाईल पर व्यस्त है। लोग बड़े बड़े कोर्स मे प्रवेश लेते है लेकिन कुछ ही दिन मे उन्हे समझ आता है हमसे यह नही होंगा। क्योंकि आज के युवा अपनी गलती स्वीकार कर उसे सुधारने तैयार ही नही, सच्चाई तो यह है आपने बड़े कोर्स मे प्रवेश लिया बहुत अच्छा किया परंतु आपने जितना समय मोबाइल में बरबाद किया कभी इसके विषय मे चिंतन किया? 

आज के युग मे हम बड़े बड़े सपने तो देखते है परंतु उसके लिए कोशिश नही करते, फिर हम सफल कैसे होंगे। युवा कहता है आज रोजगार नही है परंतु यह क्यों नही कहता की रोजगार हासिल करने हम दिलजान से कोशिश नही करते। भारत में हर कोई सरकारी नौकरी के सपने देखता है, परंतु सही में 135 करोड़ के उपर की जनसंख्या को सरकारी नौकरी दी जा सकती है? जवाब आपको ज्ञात है। भारत को आज रोजगार देनेवाले निर्माण करने की जरूरत है, न की रोजगार मांगने वाले। कहते है हर देश का विकास उद्योग के विकास के साथ होता है परंतु भारत मे बचपन से बच्चों को अच्छी नौकरी पाने अच्छी पढ़ाई जरूरी है ऐसा सिखाया जाता है इसलिए भारत का हर बच्चा पढ़ाई पूरी करते से नौकरी नौकरी करता है। इसलिए नौकरी पाने के लिए स्पर्धा है, न की सफलता पाने के लिए। दूसरी बात आज लाखों करोड़ों युवा किसी सरकारी नौकरी को पाने भर्ती परीक्षा का फॉर्म भरते है, लेकिन इन लाखों करोड़ों मे से पढ़ते कितने है? और पढ़ना कितनो को अच्छा लगता है? वैसे ही आज के समय कितने लोग मोबाइल के बिना रहते है? हर 5 मिनट मे किसका मेसेज आया यही देखते है, फिर पढाई की एकाग्रता कैसी रहेंगी। गणितीय रूप से समझे तो रोज हर एक व्यक्ति सोने के 8 घंटे तक सिर के पास मोबाइल रखता है और 16 घंटे मोबाइल साथ लेकर चलता है। जिसमे हर घंटे मे 10 मिनट हर एक व्यक्ति मोबाइल को चेक करता है, अर्थात 16 घंटो मे से 1 घंटा 40 मिनट अपना समय मोबाइल को देता है अर्थात करीबन 3 दिन महीने मे मोबाइल चलाने मे ही चले जाते है यह तो व्यस्त व्यक्ति की बात हुई। लेकिन पढ़नेवाले बच्चे सोते 8 घंटे है और उठने के बाद स्कूल कॉलेज के 5 घंटे छोडे जाए तो 11 घंटे मे से 8 घंटे मोबाइल मे गेम, चैटिंग, फेसबुक, इंस्ट्राग्राम, यूटूब मे व्यस्त रहते है। अर्थात महीने मे 10 दिन सिर्फ मोबाइल चलाने मे चले जाते है। बाकी बचे दिन घूमने फिरने गाने सुनने सुनाने नाचने गार्डन घूमने,आये दिन होनेवाले क्रिकेट मैचेस देखने मे गुजर जाते है। परंतु इसमे कुछ बच्चे अपने माता पिता शिक्षको की आज्ञा का पालन करनेवाले होते है जो समय की अहमियत समझते है और मात्र साधारण रूप से पढ़कर मोबाइल मे अपना टैलेंट बरबाद करनेवाले बच्चों से काफी आगे निकल जाते है इसलिए बच्चों मोबाइल छोड़ो और पढ़ लीख कर आगे बड़ों। 

लेखक - प्रा.राहुल जी. गौर (नागपुर)

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